Monday, July 16, 2012

युग-बोध


उद्वगिन,
नशे में चूर यहाँ,
फिरते हैं मनु के रूप यहाँ,
पथिक,
किसने कह दिया तुम्हे ,
मिलते हैं मनु से रूप यहाँ,

थे मनु,
सतजुग की काल परीक्षा में,
स्वयं सहित दासी के
वन जीवन अंगीकार किया,
कर ताप,कठिन,कराल,अनगिनत साल में
''राम'' धरा पर ले आये,

हैं मनु के रूप यहाँ,
जिनके दुष्कर्मो से
पृथ्वी का बढ़ रहा निरंतर भार यहाँ,
आशातीत तपश्या का,
बलि सा होता बलिदान यहाँ !!

-(अरुण कुमार त्रिपाठी)