Tuesday, September 4, 2012

आज अगर तुम होती पास


आज अगर तुम होती पास
मन फिर होता यूँ न उदास 
हंस-हंस कर हर क्षण में 
नव जीवन का करती संचार!

तुम कहती मै सुनता-गुनता
आशाओं पर कर दीर्घ विचार
आज अगर तुम होती पास
मन फिर होता यूँ न उदास !


जीवन के केवल दिन हैं चार
संग तुम्हारे लेकर विश्वाश 
पंख लगा उड़ते आकाश 
सरोकार कर जन्म यथार्थ
आज अगर तुम होती पास
मन फिर होता यूँ न उदास !

तन से दूर भले ही हो
रहती हो हर पल मन के पास
मन संग संग मन के होकर
मेरे मन से अपनी करती बात
आज अगर तुम होती पास
मन फिर होता यूँ न उदास !!

रह-रहकर मन ही मन में
है अब तक स्थिर विश्वाश
रंग दिखाकर इस जीवन के
खुद ही आ जाओगी  पास
आज अगर तुम होती पास
मन फिर होता यूँ न उदास !!
        -अरुण कुमार त्रिपाठी 
              21-08-2005