तुम हो एक सुन्दर सपना,-अरुण कुमार त्रिपाठी
हो नहीं सकता जो अपना,यही अभिलाषा मन में लिए,भटकती आत्मा अतृप्त मन !!निज सर्वस्व समपर्ण को,है आतुर मेरा मन ,जलती ज्वाला सी,रह-रहकर अकुलाता मन!!प्यासा मन प्रेम का तेरे,हिमगिरी सा स्वरुप,हो गई चिरकाल विरह,अब आ जाओ कहता मन!!युगों-युगों से खोया हूँ,पाने की है आस जगी,आस मेरी विश्वास बनेगी,यही पुकारता मेरा मन!!यही विचार अभी हैं मेरे,स्वर्ण स्वप्न कोरे काजल जैसे,शब्द यही हैं सुर यही हैं,इन्द्रधनुष के रंग यही हैं,सत्य यही है,हाल यही है,व्याकुल है बिन तेरे मन
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