Friday, November 26, 2010
Wednesday, July 28, 2010
Wednesday, June 16, 2010
Tuesday, April 27, 2010
Friday, April 23, 2010
अति विद्वता का अनिन्दनीय अंत .......
Thursday, April 8, 2010
सफ़र में जिंदगी



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और सफ़र में जिंदगी कटती रही !
मुसाफिर हूँ यारो न घर है न ठिकाना ,
मुझे चलते जाना है बस चलते जाना ,
मशहूर गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार की ये पंक्तिया मूलत: राजस्थानी लोहागादिया समाज को देखने के बाद अनायास ही जुबान पर चली आती है और इनकी जिंदगी के मायने स्थापित समाज व्यवस्था को मुहँ चिड़ाते नजर आते हैं इनकी न तो कोई जमीन है और न ही कोई आशियाना , अपने परम्परागत व्यवसाय को कलेजे से चिपकाए हुए बैलगाड़ियों में सफ़र करते हुए ये लोग राज और सरकार की वर्त्तमान नीतियों से पूरी तरह से अनजान हैं ,कुल्हाड़ी फावड़ा और लोहे के औजारों को बनाने और सुधारने के व्यवसाय से जुड़े ये लोग अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रहे हैं जिस पर सरकारी तंत्र का कोई हस्तक्षेप नहीं है ये भी भारत के ही वासी हैं लेकिन हमारे देश में आम आदमी के कद को सजाने और सवांरने और जीवन स्तर सुधारने के लिए क्या क्या प्रयास किये जा हैं उससे ये पूरा समाज दूर है, बैलगाड़ियों में बंजारों की तरह गावं गावं बस्ती बस्ती पड़ाव बदलते इन लोगों को अपने संघर्ष में ही असल जिंदगी नजर आ रही है।
सबसे संवेदनशील पहलू ये है की जिंदगी के इस संघर्ष में इनका पूरा परिवार साथ में होता है और कंधे से कन्धा मिलाकर एक दूसरे का साथ देते नजर आते हैं इस समाज के बच्चे जन्म लेने के बाद बहुत ही कम समय के लिए अपनी माँ के आँचल के साथ रह पाते हैं और पैर के बल खड़े होना सीखने के साथ साथ हाथ से हथौड़े चलाने का काम भी सीख जातें हैं । २१वी सदी के मानुष ने अपनी सुविधाओं को बहुत इजाद कर लिया है ,जमाना तेजी से बदल चूका है मगर हमारे समाज में आज भी रोटी की आग अमानुष जिंदगी जीने को मजबूर कर रही है कहीं देहव्यापार हो रहा है तो कहीं बचपन भीख मांग रहा है । इस अत्याधुनिक समाज में कुछ ऐसी ही भ्रांतियां मौजूद हैं जिसे देखकर जिंदगी के मायने ही खोखले साबित होते दिखाई पड़ते हैं और उसी का एक उदहारण लोहागादिया समाज के लोग हैं। मूलत राजस्थानी वेश भूषा पहने ये लोग लोहे के औजार बनाने में पारंगत होतें हैं , बैलगाड़ियों में सफ़र करते करते ये किसी भी गाव में डेरा डालकर अपना व्यवसाय कुछ दिनों तक करतें हैं फिर आगे के सफ़र का रुख कर लेतें है नदी के बहाव की तरह एक सामान गति में पानी की तरह बहते जाना ही इनका जीवन है । आज हमारा भारतीय समाज कितना आगे जा चूका है इस बात से इनका कोई सरोकार नहीं है ,और उससे बड़ी बात की सरकार के पास अमीर से लेकर गरीब से गरीब तक की जानकारी अपने कागजों में लिखकर रखी जाती है मगर इनका कोई हिसाब सरकार के पास नहीं है । फक्कडपन की जिंदगी बसर करते इन लोगों की जिंदगी देखकर भयावहता से अनायास ही मन सिहरने लगता है और जब कुछ समझ में आता है तो बस वाही किशोरदा का ऊपर लिखा गीत ... मुसाफिर हूँ यारो ,न घर है न ठिकाना ,मुझे चलते जाना है , बस चलते जाना ।
Sunday, April 4, 2010
जिंदगी का सफ़र या सफ़र में जिंदगी



और सफ़र में जिंदगी कटती रही
मुसाफिर हूँ यारो, न घर है न ठिकाना ।
मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना ।
मशहूर गायक एवं अभिनेता किशोर कुमार की ये पंक्तिया लोह्गाडिया समाज को देखने के बाद अनायास ही जुबान पर चली आती हैं और इनकी जिंदगी के मायने स्थापित समाज व्यस्था को मुहँ चिड़ाते नजर आतें हैं इनकी न तो कोई जमीन है न कोई आशियाना । अपने परम्परागत व्यसाय को कलेजे से चिपकाये हुए बैलगाड़ियों में सफ़र करते हुए ये लोग वर्तमान भारतीय व्यवस्था और व्यवस्था के पैरोकारों के मुहँ पर तमाचा मारते नजर आ रहे हैं। कुल्हाड़ी,फावड़ा और लोहे के औजारों को सुधारने से लेकर बनाने तक में निपुण इन लोगों को २१वी सदी के भारत की उड़ानों से कोई सरोकार नहीं है, अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी रहे इन लोगों पर सरकारी तंत्र का कोई ध्यान नहीं है। मूलतः राजस्थान के रहने वाले लोहागाडिया समाज के ये लोग भारतमाता की ही संतान हैं जहाँ एक ओर गरीबी हटाने, आम आदमी का जीवनस्तर ऊपर उठाने के लिए सरकार के सालाना बजट में आधे से ज्यादा रूपया खर्च किया जा रहा है वहीँ इस तरह की संघर्षपूर्ण जिदगी जीने वालों पर सरकारी तंत्र का कोई ध्यान है ।
इन लोगों को न तो बैलगाड़ियों में सफ़र की जिंदगी बिताने का दुःख है न ही गावं-गावं , बस्ती-बस्ती घूमकर अपना धंधा करने की मजबूरी का , जहाँ इनके बच्चे पैदा होने के बाद कब हाथ में हथौड़ा लेकर अपने परम्परागत व्यवसाय से जुड़ जातें हैं पता नहीं चल पाता इनकी महिलाएं बराबर अपने परिवार के साथ कदम से कदम मिलाकर अपना काम पूरी निष्ठां और मेहनत के साथ अंजाम देती हैं और परिवार के लिए रोटी की व्यवस्था में भागीदारी निभाती हैं । बैलगाड़ियों में जिंदगी बसर करने वाले इस लोहागाडिया समाज के बच्चे अपनी मासूम अवस्था में अपना बचपन खेलकूद और शिक्षा में न बिताकर अपने पैत्रक व्यवसाय को सहर देने में बिता देते हैं ।
(अरुण कुमार त्रिपाठी)
Saturday, April 3, 2010
TIGER'S KILL
बाघिन के हमले से हुई रंजना तिवारी की मौत
बांधवगढ़ नेशनल पार्क की सीमा से लगे कुचवाही ग्राम की १८ वर्षीय रंजना सुबह ५ बजे महुआ बीनने अपने घर के बाहर स्थित महुए के पेड़ के नीचे जाकर महुआ बीनने लगी वहीँ पहले से ही बाघिन एक गाय को किल करके उसको खा रही थी ,और रंजना रात के अँधेरे में उसे नहीं देख पाई ,बाघिन ने उससे खतरा महसूस करते हुए उस पर हमला कर दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया, बाघिन के हमले से पूरे गाँव में हडकंप मच गया।
बांधवगढ़ नेशनल पार्क की सीमा से लगे कुचवाही ग्राम की १८ वर्षीय रंजना सुबह ५ बजे महुआ बीनने अपने घर के बाहर स्थित महुए के पेड़ के नीचे जाकर महुआ बीनने लगी वहीँ पहले से ही बाघिन एक गाय को किल करके उसको खा रही थी ,और रंजना रात के अँधेरे में उसे नहीं देख पाई ,बाघिन ने उससे खतरा महसूस करते हुए उस पर हमला कर दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया, बाघिन के हमले से पूरे गाँव में हडकंप मच गया।
Thursday, March 11, 2010
THE REVOLUTION OF WATER



पानी का संघर्ष
किसी महान विचारक ने कहा है की तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा और वर्तमान समय की परिस्थितियां विचारक के कथन को चरितार्थ करती प्रतीत होती है गली मोहल्लो में आये दिन पीने के पानी को लेकर संघर्ष होते देखा जा रहा है । कुछ दिनों पूर्व महाराष्ट्र में पानी को लेकर एक आदमी की जान चली गयी और भारत के विभिन्न प्रान्तों में कमोबेस यही स्थितियां है, गंगा यमुना और कावेरी जैसी भारत की बड़ी बड़ी नदिया निरंतर प्रदूषण एवं बड़े बड़े बांधो को बनाये जाने के कारण भारत की जनता को प्यास से झुलसाने पर मजबूर कर रही है ,आखिर दोष भी तो हमीलोगो का है ।
किसी महान विचारक ने कहा है की तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा और वर्तमान समय की परिस्थितियां विचारक के कथन को चरितार्थ करती प्रतीत होती है गली मोहल्लो में आये दिन पीने के पानी को लेकर संघर्ष होते देखा जा रहा है । कुछ दिनों पूर्व महाराष्ट्र में पानी को लेकर एक आदमी की जान चली गयी और भारत के विभिन्न प्रान्तों में कमोबेस यही स्थितियां है, गंगा यमुना और कावेरी जैसी भारत की बड़ी बड़ी नदिया निरंतर प्रदूषण एवं बड़े बड़े बांधो को बनाये जाने के कारण भारत की जनता को प्यास से झुलसाने पर मजबूर कर रही है ,आखिर दोष भी तो हमीलोगो का है ।
Friday, February 19, 2010
todays news
aakhir hindustan me curption kab rukega aaj hamne ek sarkari nirmarna karya ko kareeb se dekha. dekha ki kis tarah sarkari rupayo ko adhikariyon dwara apani jeb me bharane ki muhim chalai ja rahi hai aur chho
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